Fight Against Pollution : 116 साल से लड़ रहे हैं हम, प्रदूषण है कि मानता नहीं

 

Fight Against Pollution : 116 साल से लड़ रहे हैं हम, प्रदूषण है कि मानता नहीं
Suffocating Air Pollution

1905 में पहली बार ब्रिटिश राज में बना था वायु प्रदूषण रोकने के लिए पहला कानून

Bharat Newsshala, 3 Dec, 2021

पिछले 5 से 6 सालों में वायु प्रदूषण (Air Pollution) को लेकर हर साल हाय-तौबा मचती रही है। उच्च अदालतें (Higher Courts) जहां सरकारों को आदेश देने तक सीमित रहीं हैं तो वहीं केंद्र से लेकर राज्य सरकारें उन आदेशों का कुछ महीने सख्ती से पालन कराकर इतिश्री कर लेती हैं। यही वजह है कि हर साल एक तय समय (नवंबर से जनवरी तक) में हवा में पीएम 2.5 की मात्रा के सामान्य स्तर (60 MGCM) से कई गुना बढ़ जाने से आम आदमी से लेकर सरकार तक सब परेशान रहते हैं। जैसे ही हवा चलती है, वायु प्रदूषण अपने खतरनाक स्तर से नीचे आ जाता है और सरकार व लोगों का ध्यान दूसरे मसलों पर लग जाता है। क्या आप जानते हैं इस तरह से प्रदूषण से लड़ते-लड़ते 100 साल से भी ज्यादा का वक्त बीत चुका है।

ऐसा नहीं है कि सरकारों ने इससे निपटने के लिए कुछ नहीं किया। प्रदूषण के खिलाफ छिड़ी जंग 100 साल से भी ज्यादा वक्त से चल रही है और तब से ही इसे लेकर नीतियां भी बनाई जा रही हैं। बावजूद इसके वक्त के साथ-साथ प्रदूषण में कमी नहीं बल्कि बढ़ोतरी ही हुई है। वहीं पिछले 20-25 साल में इसके स्तर में बेतहाशा इजाफा देखने को मिला है।

क्या है वायु प्रदूषण के खिलाफ जंग का इतिहास

सीएसआईआर (CSIR) की नागपुर स्थित प्रयोगशाला National Environmental Engineering Research Institute (Neeri) की ओर से 2019 में लॉन्च एक पोर्टल के मुताबिक, वायु प्रदूषण के खिलाफ पहला कानून 1905 में बंगाल स्मोक न्यूसेंस एक्ट (Bengal Smoke Nuisance Act) बंगाल में बना तो दिया गया था, लेकिन इसके खतरे का अहसास देश की आजादी के 23 साल बाद 70 के दशक में हुआ। इसमें यह बताया गया था कि वायु प्रदूषण को बढ़ने से रोकने के लिए अंग्रेजों ने पहला कानून बंगाल स्मोक न्यूसेंस एक्ट 1905 में बनाया था। इसके तहत भट्टियों आदि से एक तय सीमा से अधिक प्रदूषण फैलाने पर पहली बार 2000 रुपये और दूसरी बार 5000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया था।

इसके बाद 1912 में बांबे स्मोक न्यूसेंस एक्ट (Bombay Smoke Nuisance Act) लाया गया तो 1963 में गुजरात स्मोक न्यूसेंस एक्ट (Gujarat Smoke Nuisance Act) लाया गया। दोनों एक्ट का उद्देशय बंबई (Mumbai) और अहमदाबाद (Ahmedabad) के आसपास के क्षेत्र में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण कर उसे खत्म करना था। कुल मिलाकर वायु प्रदूषण रोकने के लिए कानून बनने की शुरुआत 116 साल पहले हो चुकी थी। 70 का दशक वह समय था जब सरकारों ने इस बात को महसूस किया कि प्रदूषण कितना खतरनाक हो सकता है। इसके बाद भी इस पर काम हुआ, लेकिन प्रदूषण के स्तर में भी लगातार बढ़ोतरी जारी है।

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क्या है प्रदूषण के पीछे का विज्ञान

प्रदूषण की खबरों में हम अक्सर PM 2.5 या PM 10 का जिक्र सुनते हैं। दरअसल, इसमें PM को Particulate Matter या Particle Pollution  भी कहा जाता है, जो हमारे वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिक्चर होता है। ये कण इतने छोटे होते हैं कि आप इन्हें सामान्य आंखों से नहीं देख सकते हैं। PM 2.5 और PM 10 हमारे स्वास्थ्य की दृष्टी से काफी खतरनाक माने जाते हैं। Particulate Matter कालिख, धुएं, मेटल, नाइट्रेट, सल्फेट, धूल के पानी और रबर आदि का एक जटिल मिश्रण होता है। ऐसे में PM 10 और PM 2.5 धूल,  कंस्ट्रक्शन वेस्ट को जलाने आदि के कारण अधिक फैलते है। हवा में PM 10 का सामान्य स्तर 100 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर और PM 2.5 का सामान्य स्तर 60 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर (MGCM) होना चाहिए। जबकि दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) में यह सामान्यत: डेड़ से दो गुना तक रहता है। इन दिनों PM 2.5 का स्तर अपने सामान्य स्तर से कई गुना ज्यादा है, जो हमारे स्वास्थय को नुकसान पहुंचाता है।

स्वास्थ्य के लिए कितना खतरनाक है प्रदूषण

लॅन्सेट (The Lancet) में प्रकाशित इंडिया स्टेट-लेवल डिजीज बर्डन इनिशिएटिव (ISLDBI) की रिपोर्ट की मानें तो 2019 में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में 17 लाख (1.7 Million) लोगों की मौत हो गई, जो कुल मौतों का लगभग 18% है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 1990 और 2019 के बीच घर के अंदर (Indoor) के वायु प्रदूषण से मृत्यु दर में 64% की कमी आई, जबकि इस दौरान घर से बाहर (Outdoor) वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 115% की बढ़ोतरी देखी गई।

PM 2.5 और PM 10 के कणों का आकार बहुत छोटा होने के कारण ये आसानी से सांस लेने के वक्त किसी भी मनुष्य के फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे खांसी के अलावा अस्थमा की भी शिकायत हो सकती है। हाई ब्लड प्रेशर (Blood Pressure), स्ट्रोक (Stroke) आदि गंभीर रोग का भी खतरा हो सकता है। जब हवा में धुंध या कोहरा बढ़ता है और दृश्यता कम होती है तो PM 2.5 का स्तर अधिक होता है हवा में इन कणों का सबसे ज्यादा असर बच्चों, बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं पर पड़ता है।

कोविड काल (Covid-19) में इससे बचाव है जरूरी

वायु प्रदूषण से बचने के कारगर उपाय में अच्छी क्वालिटी के मास्क का इस्तेमाल करना सबसे पहली प्राथमिकता में आता है। घर से बाहर निकलते वक्त इसका इस्तेमाल करना चाहिए, साथ ही बच्चों को भी मास्क के इस्तेमाल की आदत डालें। यह हमारी आंखों पर भी असर डालता है। इसलिए बाहर जाने पर चश्मा भी लगाएं। इसके साथ ही जो लोग पार्क आदि में एक्सरसाइज (Exercises) करते हैं, उन्हें प्रदूषण का लेवल बढ़ने पर बाहर वर्कआउट (Workout) करने से बचना चाहिए और घर पर ही एक्सरसाइज करनी चाहिए। इसके अलावा अस्थमा रोगी, हृदय रोग से ग्रस्त लोगों को बाहर निकलने से बचें और अपने डॉक्टर के संपर्क में रहें। इसके अलावा अगर घर का कोई सदस्य स्मोकिंग करता है तो उसे ऐसा करने से रोकें, नहीं तो घर के अंदर स्मोकिंग नहीं करने दें। वहीं अगर प्रदूषण का स्तर ज्यादा दिन तक बढ़ा रहें तो मुमकिन होने पर कुछ समय के लिए जगह भी बदली जा सकती है।

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अगले आदेश तक स्कूल बंद, कंस्ट्रक्शन पर भी रोक

लोगों को राहत मिले, इसके लिए सरकार अपनी तरफ से कदम उठा रही है। इसके तहत 7 दिसंबर तक दिल्ली-एनसीआर में निर्माण कार्यों पर रोक लगी रहेगी। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय (Gopal Ray) ने कहा कि वाहनों से होने वाले प्रदूषण के मद्देनजर शुरू किए गए 'रेड लॉइट ऑन, गाड़ी ऑफ' (Red light on, Gaadi off) अभियान को भी 18 दिसंबर तक आगे बढ़ाया जाएगा। साथ ही आवश्यक सेवाओं में लगे ट्रकों के अलावा अन्य सभी ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध 7 दिसंबर तक बढ़ाया गया है। हालांकि, सीएनजी या बिजली से चलने वाले ट्रकों को प्रवेश की अनुमति दी जाएगी। वहीं सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) की फटकार के बाद राजधानी दिल्ली के स्कूल भी 3 दिसंबर से अगले आदेश तक बंद कर दिए गए हैं।  

आने वाले दिनों में क्या मिलेगी इससे राहत ?

पिछले दिनों हवा की रफ्तार बढ़ने से प्रदूषण के स्तर में सुधार होता दिखाई दिया था। तेज खिली धूप ने भी इसे काफी कम किया था, लेकिन हवा के रुकने से एक बार फिर दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। हलांकि केन्द्र द्वारा संचालित संस्था सफर ने आने वाले दिनों में हवा चलने का अनुमान जताया है, जिससे प्रदूषण के स्तर में कमी आएगी। ऐसे में कहा जा सकता है कि अभी भी हम काफी हद तक प्रकृति पर निर्भर हैं और यही हमें इस दमघोंटू हवा से निजात दिला सकती है।

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