आज भी लोग जब गांवों के बारे में सोचते हैं तो उनके जहन में टूटी-फूटी गलियां और उनमें भरा पानी, हर तरफ फैली गंदगी और न जाने क्या-क्या आता है, लेकिन भारत में एक ऐसा भी गांव है जिसे न सिर्फ अपने देश में बल्कि एशिया में सबसे स्वच्छ गांव होने का खिताब मिला हुआ है। जी हां, हम बात कर रहे हैं मेघालय के मॉलिन्नॉन्ग गांव के बारे में। आइये जानते हैं इस साफ सुथरे गांव की खूबियां, जिन्होंने इसे इस मुकाम तक पहुंचाया है।
सौ फीसदी लोग पढ़े-लिखे, अंग्रेजी में करते हैं बात
मेघालय की राजधानी
शिलांग से करीब 80 किमी दूर यह गांव मौजूद है। इस गांव को इस मुकाम तक पहुंचाने
में यहां के लोगों को सबसे बड़ा हाथ है। यहां के सभी लोग पढ़े-लिखे हैं और
ज्यादातर अंग्रेजी में बात करते हैं। आज के दौर में जब लोगों को सिर्फ अपना घर साफ
करने की ही चिंता रहती है, ऐसे में यहां के लोगों ने पूरे गांव को न सिर्फ साथ
सुथरा किया बल्कि कई कड़े नियमों को अपना कर बच्चों को कम उम्र से ही इसके प्रति
जागरूक करके अपनी परंपरा को आगे बढ़ाया।
4 साल में ही दी जाती है
बच्चों को सफाई की शिक्षा
कहते हैं न कि जो आदत बचपन से डाल दी जाए वो पूरी उम्र नहीं जाती। कुछ ऐसा ही इस गांव में होता है, जो इसे स्वच्छ बनाने में मदद करता है। गांव में बच्चों को 4 साल की उम्र से ही साफ-सफाई के बारे में बताना शुरू कर दिया जाता है। इससे जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, वह स्वच्छता का महत्व समझने लगते हैं और गांव को साफ रखने में अपना योगदान निभाने लगते है।
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सख्त नियमों का करना पड़ता है
सबको पालन
गांव में साफ-सफाई बनी रहे इसके लिए कुछ नियम भी बनाए गए हैं। गांव में प्लास्टिक
की थैली पूरी तरह से बैन है। साथ ही थूकने पर भी पाबंदी
है। लोग कचरे को इधर-उधर न फेंके इसके लिए गांव की हर सड़क पर बांस से बनीं टोकरियां रखी गई
हैं। कचरे को एक जगह इकट्ठा
कर रीसाइकल करके खेती के लिए खाद की तरह इस्तेमाल करते हैं। यहां
के बगीचों को भगवान का गार्डन भी कहा जाता है। इतना ही नहीं 2007 से ही यहां के हर घर में टॉयलेट जैसी बुनियादी
सुविधाएं उपलब्ध हैं, जो बाकी देश में काफी सालों बाद जरूरी हुआ है।
2003 से पहले तक यहां सड़क तक नहीं थी
आप यकीन नहीं करेंगे कि 2003
के पहले तक इस गांव में सड़कें नहीं थीं। डिस्कवरी
इंडिया मैगजीन की तरफ से इस गांव को सबसे क्लीन गांव का दर्जा देने के बाद यहां सड़कें बन गईं। इसके बाद यह गांव टूरिजम के
मैप पर भी छा गया और यहां पर्यटक भी पहुंचने लगे। यह गांव
2003 में एशिया का सबसे साफ और 2005 में भारत का सबसे
साफ गांव बना। इस गांव पर एक डॉक्युमेंट्री भी बनाई गई है।
महिलाओं
को मिले हैं पुरुषों से ज्यादा अधिकार
खसी समुदाय (Khasi Tribes) से जुड़े इस गांव मॉलिन्नॉन्ग (Mawlynnong) में तकरीबन 95 परिवार रहते हैं। ऐसे में गांव की कुल आबादी
करीब 500 है। खसी समुदाय में मातृत्व सत्ता का चलन है। यहां पर महिलाओं को
पुरुषों से ज्यादा अधिकार मिले हुए हैं। यही वजह है कि
यहां बच्चे अपने नाम के पीछे पिता की जगह मां का सरनेम लगाते हैं। गांव के के एक शख्स के मुताबिक, “हमारे
दादा-परदादा के जमाने से ही गांव को साफ रखने का दौर चला आ रहा है। बच्चों को छोटी उम्र में
ही सफाई का महत्व बताया जाता है। इतना ही नहीं साफ-सफाई में अगर कोई शामिल नहीं होता
तो उसे खाना नहीं मिलता है।”
पूरे विश्व में प्लास्टिक एक गंभीर समस्या के रूप में फैल चुका है। यही वजह है कि मेघालय के इस गांव में प्लास्टिक पूरी तरह से बैन है। इसकी जगह यहां के लोग कपड़े के बने थैले और बांस के बने कुड़ेदान का इस्तेमाल करते हैं। लोग लकड़ी का प्रयोग अधिक करते हैं। यहां आने वाले टूरिस्ट अगर कचरा फेंकता है तो गांव के लोग स्वयं उसकी सफाई करते हैं। इस गांव के आय का मुख्य स्त्रोत खेती-बाड़ी है।
यहां देखने के लिए और क्या-क्या है
बॉर्डर पर स्थित होने के कारण यहां से बांग्लादेश की सीमा
देखी जा सकती है। यहां के रंग-बिरंगे फूलों से सजे गार्डन मौजूद हैं जो अपने आप
में बेहद आकर्षक हैं। इसके अलावा चर्च ऑफ़ एपीफेनि भी यहां स्थित है। इसके
अलावा यहां ब्रिज
का निर्माण पेड़ की जड़ों से किया गया है जो देखने में बेहद खुबसूरत है। साथ ही
पूरे गांव की हरियाली देखना भी अपने आप में सुखद अनुभव
है। यहां मौजूद नदी, झरने, लिविंग रूट ब्रिज, पहाड़ आदि बेहद मनमोहक हैं। यहां के द्वाकी (Dwaki) नदी का पानी इतना साफ है कि नदी के अंदर साफ-साफ देखा जा सकता
है।
नए तरह के फूड का डेस्टिनेशन भी है यह
गांव
गांव के लोग ऑर्गेनिक खेती करते हैं। इस वजह से यहां
पर टूरिस्ट को जो भी फूड मिलेगा वह पौष्टिकता से भरपूर होगा। यहां लाल चावल
से बनी डिश जदोह का स्वाद पर्यटकों को काफी पसंद आता है। इसके अलावा
यहां मिनिल सोंगा, पुखलेईन, तुंग्रीबाई और केले के फूल से बनी सब्जी भी पॉपुलर फूड में से हैं।
कब और
कैसे पहुंचे यहां
चूंकि यहां हरियाला, झरने, नदी हैं तो यहां घूमने के लिए सबसे
सही वक्त मॉनसून का रहेगा। साथ ही ठंड की शुरुआत में भी यहां जाया जा सकता है। गांव की दूरी
शिलांग से 90 किमी और चेरापूंजी से 92 किमी है। शिलांग
टर्मिनल मेघालय में सबसे नजदीक का एयरपोर्ट है। यहां से सड़क मार्ग के जरिए इस गांव
में पंहुचा जा सकता है।