‘प्लास्टिक’ यह एक ऐसा शब्द और चीज़ है, जिसे आज बच्चा-बच्चा जानता है। इतना ही नहीं पिछले कुछ सालों में इसके नुकसान के बारे में भी लोगों में जागरूकता बढ़ी है, पर अफसोस कि यह जागरुकता और जानकारी भी प्लास्टिक के खतरे से हमें बचा नहीं पा रही है। इस बीच ‘Micro Plastic’ एक नया खतरा बनकर उभरा है। दरअसल, हमारे चारों तरफ और आसपास कई किस्म की प्लास्टिक की चीज़े हैं, जिनका इस्तेमाल हम रोजाना करते हैं, लेकिन हममें से बहुत सारे लोग ये नहीं जानते कि हमारी ज़िंदगी पर इसका कितना खतरनाक असर हो रहा है। इनमें से एक है ‘Micro Plastic’, जो हमारे शरीर के अंदर तक मिल रहा है। कई माध्यमों के जरिए यह हमारे शरीर तक भी पहुंच गया है और इसका नुकसान आने वाले समय में इंसानों को उठाना पड़ेगा।
क्या होता है माइक्रो प्लास्टिक
प्लास्टिक के छोटे-छोटे कणों को माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। आमतौर पर इनका साइज 1 माइक्रोमीटर से 5 मिलीमीटर तक होता है। मौजूदा वक्त में पृथ्वी पर लगभग हर जगह पर ये पाए जा चुके हैं, चाहे वह गहरा समुद्रों हो या सबसे ऊंचे पहाड़। यहां तक कि हवा, मिट्टी और खाद्य श्रृंखला में भी इनकी मौजूदगी दर्ज की जा चुकी है, लेकिन इन सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि अब ये इंसानी खून में भी मिल चुका है।
इंसानी खून में मिला माइक्रो प्लास्टिक
वैज्ञानिकों को पहली बार इंसान के खून में माइक्रो प्लास्टिक्स मिला है। दरअसल, नीदरलैंड के शोधकर्ताओं ने एक रिसर्च की, जिसे हीथर ए. लेस्ली एट अल, एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में पिछले साल 24 मार्च को ऑनलाइन प्रकाशित गया है। इस रिसर्च के तहत 22 लोगों के ब्लड सैंपल की जांच की गई। इनमें से 17 में प्लास्टिक के कण पाए गए। रिसर्च में हर एक व्यक्ति में औसतन 1.6 माइक्रोग्राम प्लास्टिक के कण प्रति मिलीलीटर रक्त के सैंपल में पाए गए। रिसर्चर्स ने जिन कणों की तलाश की उनका साइज लगभग 700 नैनोमीटर (0.0007 मिलीमीटर के बराबर) जितना छोटा था। इस स्टडी में बताया गया है कि माइक्रो प्लास्टिक कई तरीकों से शरीर में जा सकता है, जैसे हवा, पानी या खाने के जरिए।
आखिर लोगों के अंदर पहुंचता कैसे है यह ?
खाने-पीने की चीजों की प्लास्टिक पैकेजिंग और प्लास्टिक के प्लेट-ग्लास के साथ यह आ रहा है। सबसे ज्यादा पैक्ड पानी पीने वालों को खतरा है, अध्ययन बताते हैं कि बॉटल के पानी में माइक्रो-प्लास्टिक ज्यादा है। दुनिया भर में हर मिनट 10 लाख पीने के पानी की बोतलें खरीदी जाती हैं जो कि प्लास्टिक से बनी होती है। जिसका सीधा अर्थ यह हुआ कि अब प्लास्टिक के छोटे अंश और रेशे बड़ी मात्रा में कणों के रूप में टूट रहे हैं और पानी की स्रोतों और पाइपों के जरिए अधिक मात्रा में हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं। ऐसे में जब हम यह जानते हैं कि यह माइक्रो प्लास्टिक कई तरह से हमारे लिए खतरा बनते जा रहे हैं इन पर ध्यान दिया जाना अत्यंत जरुरी है।प्रदूषण इसकी सबसे बड़ी वजह है। हमारे समुद्र, नदियां, मिट्टी, हवा और बारिश के पानी में प्लास्टिक पहुंच गया है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
मानव स्वास्थ्य पर माइक्रो प्लास्टिक का प्रभाव बढ़ती चिंता का विषय है। अध्ययनों से पता चलता है कि माइक्रो प्लास्टिक मानव शरीर में अंतर्ग्रहण, सांस लेने और यहां तक कि त्वचीय अवशोषण के माध्यम से जमा हो सकता है। एक बार निगलने के बाद, वे हानिकारक रसायनों का रिसाव कर सकते हैं और शारीरिक प्रक्रियाओं को बाधित कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से सूजन, ऑक्सीडेटिव तनाव और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा, माइक्रो प्लास्टिक्स भारी धातुओं और लगातार कार्बनिक प्रदूषकों जैसे अन्य प्रदूषकों के परिवहन के लिए वैक्टर के रूप में कार्य कर सकता है, जिससे उनके विषाक्त प्रभाव बढ़ जाते हैं।
पर्यावरण पर प्रभाव
माइक्रो प्लास्टिक समुद्री जीवन, स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र और वन्य जीवन के लिए महत्वपूर्ण खतरा पैदा करता है। इन्हें अक्सर समुद्री जानवर गलती से भोजन समझ लेते हैं, जिसे खाने के बाद में पाचन तंत्र अवरुद्ध हो जाता है, पोषक तत्वों का सेवन कम हो जाता है और विषाक्त पदार्थों का जैव संचय होता है, जो प्रजनन और विकासात्मक प्रक्रियाओं को बाधित कर सकता है, जो अंततः पूरे पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित कर सकता है। इसके अतिरिक्त, माइक्रो प्लास्टिक प्रदूषकों को सोख और केंद्रित कर सकता है, जिससे खाद्य श्रृंखलाओं में संदूषक फैल सकते हैं और पारिस्थितिक क्षति बढ़ सकती है।
माइक्रो प्लास्टिक संकट से निपटने के लिए विभिन्न स्तरों पर ठोस प्रयासों की आवश्यकता है:
- प्लास्टिक की खपत को कम करना: एकल-उपयोग प्लास्टिक के उपयोग को कम करना और टिकाऊ विकल्पों को अपनाने से पर्यावरण में प्लास्टिक कचरे के प्रवाह को रोकने में मदद मिल सकती है।
- अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार: रीसाइक्लिंग, अपशिष्ट-से-ऊर्जा प्रौद्योगिकियों और उचित निपटान सुविधाओं सहित प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को लागू करने से प्लास्टिक प्रदूषण को पारिस्थितिक तंत्र में प्रवेश करने से रोका जा सकता है।
- नियामक उपाय: उपभोक्ता उत्पादों और औद्योगिक प्रक्रियाओं में माइक्रो प्लास्टिक्स के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने या प्रतिबंधित करने के लिए नियमों को लागू करने और लागू करने से पर्यावरण में उनकी रिहाई को सीमित किया जा सकता है।
- सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा: शिक्षा अभियानों के माध्यम से माइक्रो प्लास्टिक के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने से व्यक्तियों को सूचित विकल्प चुनने और पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को अपनाने के लिए सशक्त बनाया जा सकता है।
रीसाइकल और सुरक्षित निपटारा
रीसाइकल प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन और माइक्रो प्लास्टिक के प्रसार को कम करने के लिए एक आशाजनक समाधान प्रदान करता है। प्लास्टिक सामग्री को लैंडफिल और भस्मक से हटाकर, पुनर्चक्रण से संसाधनों का संरक्षण होता है, ऊर्जा की खपत कम होती है और पर्यावरण प्रदूषण कम होता है।
रासायनिक रीसाइकलिंग और यांत्रिक रीसाइकलिंग जैसी नवोन्मेषी पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियां प्लास्टिक कचरे को नए उत्पादों में बदलने में सक्षम बनाती हैं, जो एक चक्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान करती हैं जहां सामग्रियों का पुन: उपयोग और पुनर्उपयोग किया जाता है, जिससे वर्जिन प्लास्टिक की मांग कम हो जाती है। इसके अलावा, कचरे के उचित पृथक्करण जैसे जिम्मेदार निपटान प्रथाओं को बढ़ावा देना, प्लास्टिक के कुशल रीसाइक्लिंग की सुविधा प्रदान करता है और प्राकृतिक वातावरण के प्रदूषण को रोकता है।