Ayurveda Day 2024 : पांच हजार साल से जीवन जीने की एक कला है आयुर्वेद

 

आने वाली 29 अक्टूबर को नौवां आयुर्वेद दिवस मनाया जाएगा, जिसका विषय इस बार "वैश्विक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद नवाचार" है। इस साल, 150 से अधिक देशों ने इस दिन को मनाने के लिए कमर कस ली है। भारत में, आयुष मंत्रालय दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान में एक भव्य आयोजन का आयोजन कर रहा है। ऐसे में हम आज के इस आर्टिकल के जरिए जानेंगे कि आयुर्वेद सुदृढ़ हुआ है और आने वाले समय में क्या हैं संभावनाएं।

5000 साल पुरानी हैं आयुर्वेद की जड़ें 

आयुर्वेद, भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली, न केवल चिकित्सा के क्षेत्र में बल्कि जीवन जीने की कला के रूप में भी हमारे समाज का अभिन्न हिस्सा रहा है। आयुर्वेद की जड़ें लगभग 5000 साल पुरानी हैं और इसे वेदों से उत्पन्न माना जाता है। "आयुर्वेद" शब्द संस्कृत के दो शब्दों "आयु" (जीवन) और "वेद" (ज्ञान) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है "जीवन का विज्ञान"। यह चिकित्सा प्रणाली शरीर, मन और आत्मा के संतुलन पर आधारित है और इसका उद्देश्य संपूर्ण स्वास्थ्य और कल्याण को प्राप्त करना है।

आयुर्वेद का इतिहास और विकास यात्रा

आयुर्वेद की उत्पत्ति वेदों, विशेष रूप से ऋग्वेद और अथर्ववेद, में मानी जाती है, जहाँ जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक तरीकों से चिकित्सा के उपाय बताए गए हैं। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता आयुर्वेद के दो प्रमुख ग्रंथ हैं, जो चिकित्सा विज्ञान के क्रमिक विकास की जानकारी देते हैं। सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक माना जाता है और चरक ने रोगों के निदान और चिकित्सा में उत्कृष्टता पाई थी। इन ग्रंथों ने आयुर्वेद को एक ठोस आधार दिया और इसे भारत की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रतिष्ठित किया।

प्राचीन काल में आयुर्वेद केवल चिकित्सा का साधन नहीं था, बल्कि एक जीवनशैली का मार्गदर्शन भी था। यह लोगों को सही आहार, दिनचर्या, और मानसिक संतुलन के महत्व के बारे में सिखाता था। आयुर्वेद में पंचमहाभूत (धरती, जल, अग्नि, वायु, और आकाश) के सिद्धांत और त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) के सिद्धांतों के माध्यम से शरीर और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया जाता है।

दादी-नानी के नुस्खे और आयुर्वेद

भारतीय संस्कृति में दादी-नानी के नुस्खों में आयुर्वेद की गहरी पैठ रही है। घर-घर में हल्दी का दूध, तुलसी का काढ़ा, और अदरक-शहद का प्रयोग आयुर्वेदिक ज्ञान का ही हिस्सा हैं। ये नुस्खे जीवन की छोटी-छोटी बीमारियों जैसे सर्दी-खांसी, पेट दर्द, और जख्मों के इलाज में सदियों से अपनाए जाते रहे हैं। आयुर्वेद का यह व्यावहारिक ज्ञान पीढ़ियों से हस्तांतरित होता रहा है, जिससे यह न केवल औपचारिक चिकित्सा प्रणाली का हिस्सा बना, बल्कि आम लोगों के जीवन का अभिन्न अंग भी रहा है।

आधुनिक युग में आयुर्वेद की स्वीकृति


आज के आधुनिक युग में जब लोग फास्ट-फूड, तनावपूर्ण जीवनशैली और औद्योगिक प्रदूषण के कारण विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं, आयुर्वेद का महत्व और भी बढ़ गया है। पिछले कुछ दशकों में, आयुर्वेदिक चिकित्सा और जीवनशैली की ओर झुकाव बढ़ा है। लोग अब प्राकृतिक, साइड-इफ़ेक्ट रहित चिकित्सा विधियों को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा, योग और ध्यान जैसी प्रथाओं के साथ मिलकर, आयुर्वेद ने समग्र स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कोविड-19 के दौरान आयुर्वेद की भूमिका

साल 2020 में जब पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही थी, तब आयुर्वेद ने लोगों को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी समर्थन दिया। इम्युनिटी बूस्टर के रूप में गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, और हल्दी जैसी आयुर्वेदिक औषधियों का उपयोग बढ़ा। भारतीय आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेदिक उपायों को बढ़ावा दिया, जिसमें काढ़ा पीना, हल्दी-दूध का सेवन, और स्वस्थ जीवनशैली का पालन करना शामिल था। कई लोगों ने इन उपायों से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया। कोविड के समय आयुर्वेद ने एक बार फिर अपनी प्रासंगिकता साबित की और लोगों के बीच इसकी स्वीकृति बढ़ी।

आयुर्वेद का वैश्विक भविष्य

आयुर्वेद का भविष्य उज्ज्वल नजर आ रहा है। आज भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी आयुर्वेद लोकप्रिय हो रहा है। अमेरिका, यूरोप, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में आयुर्वेदिक चिकित्सा केंद्र खुल चुके हैं और लोग इसे अपनी स्वास्थ्य दिनचर्या में शामिल कर रहे हैं। वैश्विक स्तर पर आयुर्वेद को वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में मान्यता मिल रही है और यह एक सशक्त चिकित्सा पद्धति के रूप में उभर रहा है।

आधुनिक वैज्ञानिक शोधों ने भी आयुर्वेदिक दवाओं और उपचारों की प्रभावशीलता को मान्यता दी है, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ा है। साथ ही, आयुर्वेद को आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के साथ मिलाकर एक संपूर्ण चिकित्सा प्रणाली विकसित करने की कोशिशें जारी हैं, जिससे यह आने वाले समय में और भी महत्वपूर्ण हो सकता है।

...इसलिए पिछले आठ साल से मनाया जा रहा आयुर्वेद दिवस

आयुष मंत्री प्रतापराव जाधव ने इस दिन को एक वैश्विक आंदोलन बताया और कहा कि इस दिन को 150 देशों में मनाया जाना गर्व की बात है। आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कहा कि आयुर्वेद दिवस समारोह में गैर-संचारी रोगों, मानसिक स्वास्थ्य, एंटीबैक्टीरियल प्रतिरोधक क्षमता और वृद्धावस्था की देखभाल सहित महत्वपूर्ण स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए आयुर्वेद को आधुनिक विज्ञान के साथ एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। आयुर्वेद की जानकारी अब Ayush Grid के माध्यम से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आसानी से उपलब्ध है, जिसमें Ayurgyan Scheme, Ayush Research Portal और Namaste Portal जैसी प्रमुख पहल शामिल हैं। वर्तमान में, दुनिया भर के 24 देश आयुर्वेद को मान्यता देते हैं और 100 से अधिक देशों में आयुर्वेद उत्पादों का निर्यात किया जाता है।

आने वाले समय में होगा इसका महत्वपूर्ण योगदान

आयुर्वेद सिर्फ चिकित्सा नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है। इसका समग्र दृष्टिकोण हमें स्वस्थ और संतुलित जीवन प्रदान करता है। प्राचीन काल से लेकर आज तक, आयुर्वेद ने समाज में अपनी अहम भूमिका निभाई है और आधुनिक दौर में भी यह प्रासंगिक बना हुआ है। कोविड-19 के दौरान इसकी बढ़ती लोकप्रियता ने यह सिद्ध कर दिया कि आयुर्वेद केवल प्राचीन चिकित्सा पद्धति नहीं है, बल्कि एक सशक्त समाधान है। आने वाले समय में, न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में आयुर्वेद की स्वीकृति और भी बढ़ने की संभावना है, और यह वैश्विक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला है।

                                                                      (नोट ः आर्टिकल में इस्तेमाल हुईं सभी फोटो AI जनरेटेड हैं)




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