कब तक टिकेगी खोखली पब्लिसिटी, कंटेंट मेकर्स को समझनी होगी जिम्मेदारी

मनोरंजन जगत समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो लोगों के सोचने और समझने की दिशा को प्रभावित करता है। फिल्मों और कहानियों के माध्यम से लेखक और फिल्म निर्माता समाज को एक नया दृष्टिकोण देते हैं। वे अपनी कला से न केवल दर्शकों का मनोरंजन करते हैं, बल्कि उनकी सोच, विचारधारा और दृष्टिकोण को भी प्रभावित करते हैं। इसीलिए, वर्तमान समय में फिल्ममेकर और कहानीकारों को और भी अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार होने की जरूरत है।

मनोरंजन से आगे की जिम्मेदारी

मनोरंजन का उद्देश्य सिर्फ लोगों को हंसाना, रुलाना या रोमांचित करना नहीं होना चाहिए। यह एक माध्यम है, जिससे सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश डाला जा सकता है और सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। फिल्में और कहानियां समाज का आईना होती हैं, लेकिन इन्हें इस तरह प्रस्तुत करना चाहिए कि वे नकारात्मकता को बढ़ावा देने के बजाय समाज में जागरूकता फैलाएं।

कंटेंट की शक्ति और उसका प्रभाव

एक अच्छी कहानी लोगों के मन में गहराई तक उतर सकती है। कई बार फिल्में और कहानियां समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक होती हैं, लेकिन कुछ मामलों में वे हिंसा, नकारात्मकता और असामाजिक व्यवहार को भी बढ़ावा देती हैं।

नकारात्मकता के दुष्प्रभाव

हिंसा और अपराध को बढ़ावा: कई बार फिल्मों और वेब सीरीज में दिखाए गए अपराध, हिंसा और असामाजिक गतिविधियां युवाओं पर गलत प्रभाव डाल सकती हैं।

गलत विचारधाराओं का प्रचार: कुछ कहानियां और फिल्में ऐसे विचारों को प्रस्तुत करती हैं, जो समाज में भेदभाव, रूढ़ियों और नकारात्मकता को बढ़ावा देती हैं।

यथार्थ से परे कल्पनाएँ: कई बार फिल्मों में ऐसी बातें दिखाई जाती हैं, जो वास्तविकता से कोसों दूर होती हैं, जिससे दर्शकों की सोच पर विपरीत असर पड़ सकता है।

संतुलन बनाना आवश्यक

अगर किसी कहानी की मांग नकारात्मकता दिखाने की है, तो यह भी आवश्यक है कि उस नकारात्मकता के दुष्परिणामों को भी स्पष्ट रूप से दिखाया जाए। अगर किसी फिल्म में अपराध को दिखाया जा रहा है, तो यह भी आवश्यक है कि उसके परिणामों को भी प्रस्तुत किया जाए ताकि दर्शकों को यह समझ आए कि यह एक गलत कार्य है।

पिछले कुछ सालों में बदला कंटेंट

पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय सिनेमा और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कुछ ऐसी फिल्में और शो प्रस्तुत किए गए हैं, जिनका कंटेंट आक्रामक रहा है और जिनसे समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। इनमें से कुछ फिल्मों में अत्यधिक हिंसा, आपत्तिजनक भाषा, और सामाजिक मूल्यों के विपरीत सामग्री शामिल रही है, जो विशेषकर युवाओं पर गलत प्रभाव डाल सकती है।

विवादों में घिरा यूट्यूबर का शो

हाल ही में, यूट्यूबर और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर रणवीर अल्लाहबादिया अपने शो 'इंडियाज गॉट लैटेंट' में की गई आपत्तिजनक टिप्पणी के कारण विवादों में घिर गए। शो के दौरान, उन्होंने एक प्रतिभागी से उसके माता-पिता और यौन संबंधों को लेकर अनुचित सवाल पूछा, जिससे व्यापक आलोचना हुई। इस घटना के बाद, मुंबई के दो वकीलों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें शो के आयोजकों और कॉमेडियंस के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई। शिकायत में कहा गया कि इस शो में महिलाओं के शरीर को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां की गईं, जो बच्चों के दिमाग में गंदे विचार फैला सकती हैं।

इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सभी को है, लेकिन यह स्वतंत्रता तब समाप्त हो जाती है जब यह दूसरों की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है। उन्होंने कहा कि अगर किसी ने मर्यादा लांघी है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

सेंसरशिप और नैतिकता की छिड़ी बहस

इस घटना ने सोशल मीडिया पर कंटेंट की सेंसरशिप और नैतिकता को लेकर बहस छेड़ दी है। कई लोग मांग कर रहे हैं कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रस्तुत की जाने वाली सामग्री पर सख्त निगरानी होनी चाहिए ताकि समाज में नकारात्मक प्रभाव न पड़े। इस संदर्भ में, सरकार और संबंधित प्राधिकरणों को यह सुनिश्चित करना होगा कि मनोरंजन सामग्री समाज के नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप हो, ताकि समाज पर सकारात्मक प्रभाव डाला जा सके।

फिल्ममेकर और कहानीकारों की सामाजिक जिम्मेदारी

1. जिम्मेदारीपूर्ण कंटेंट निर्माण

फिल्ममेकर और कहानीकारों को यह समझने की आवश्यकता है कि उनकी कृति लाखों लोगों तक पहुंचती है। इसीलिए, उन्हें ऐसे विषयों पर काम करना चाहिए, जो समाज के लिए लाभदायक हों और लोगों को जागरूक करें।

2. सही संदेश देना जरूरी

फिल्मों और कहानियों में सामाजिक मुद्दों को प्रस्तुत करते समय यह जरूरी है कि सही संदेश दिया जाए।

3. नकारात्मकता का तर्कसंगत चित्रण

अगर कोई नकारात्मक विषय कहानी का हिस्सा है, तो यह सुनिश्चित किया जाए कि उसका चित्रण केवल सनसनीखेज न होकर तार्किक हो।

4. सेंसरशिप और आत्मनियंत्रण

सेंसरशिप का एक उद्देश्य यह भी होता है कि कोई भी सामग्री समाज के लिए नुकसानदायक न हो। लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है कि फिल्ममेकर और कहानीकार स्वयं अपनी जिम्मेदारी समझें और अनावश्यक रूप से आपत्तिजनक सामग्री न बनाएं।

5. नए और सकारात्मक विषयों की खोज

ऐसे विषयों पर फिल्में बननी चाहिए जो प्रेरणादायक हों, सामाजिक मूल्यों को मजबूती दें, और दर्शकों को कुछ अच्छा सिखाएं।

दर्शकों की भूमिका भी महत्वपूर्ण

जितनी जिम्मेदारी फिल्ममेकर और कहानीकारों की है, उतनी ही जिम्मेदारी दर्शकों की भी है। दर्शकों को यह समझना चाहिए कि वे क्या देख रहे हैं और किस तरह की सामग्री को समर्थन दे रहे हैं। अगर कोई फिल्म या कहानी समाज के लिए नुकसानदायक है, तो उसे अस्वीकार करने का साहस होना चाहिए।

निष्कर्ष

फिल्ममेकर और कहानीकार केवल मनोरंजन के साधन नहीं हैं, बल्कि वे समाज के विचारों को आकार देने वाले महत्वपूर्ण स्तंभ भी हैं। उन्हें अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा और इस बात का ध्यान रखना होगा कि उनकी रचनाएँ समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालें। नकारात्मकता दिखाना गलत नहीं है, लेकिन उसका दूसरा पहलू भी प्रस्तुत किया जाए, ताकि लोगों को यह समझ में आए कि जीवन में नैतिकता, सच्चाई और अच्छाई कितनी महत्वपूर्ण हैं।

सिनेमा और साहित्य का सही उपयोग कर हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं। यह समय की मांग है कि फिल्ममेकर और कहानीकार न केवल अपनी कला से बल्कि अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से भी जागरूक हों, ताकि उनका योगदान समाज को सही दिशा में ले जाने में सहायक हो।

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