नहीं मिलेगा वो पुराना वाला टेस्ट
मुंबई की ईरानी बेकर्स एसोसिएशन ने इस फैसले पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि यह आदेश पुरानी परंपराओं और स्वाद की मौलिकता पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा।
ईरानी बेकर्स का कहना है कि लकड़ी और कोयले से बनी भट्ठियों में बेक किए गए उत्पादों का स्वाद और बनावट गैस या इलेक्ट्रिक ओवन से बनने वाले उत्पादों से अलग होता है। उन्होंने BMC से कुछ विशेष बेकरियों को छूट देने की मांग की है ताकि वे अपनी पारंपरिक शैली में बेकिंग जारी रख सकें। साथ बीएमसी से कुछ समय और वित्तीय सहायता की मांग की है ताकि वे अपनी भट्टियों को आधुनिक और पर्यावरण के अनुकूल बना सकें।
मुंबई में ईरानी बेकरियों का इतिहास
मुंबई में ईरानी बेकरियों की शुरुआत 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में हुई थी, जब ईरान से आए पारसी और ईरानी समुदाय के लोग यहां बसने लगे। ये बेकरियां जल्द ही मुंबई की पहचान बन गईं।
इन कैफे और बेकरियों की खास बात यह है कि यहां की सजावट पुराने ज़माने की लकड़ी की कुर्सियां, संगमरमर की मेजें और बड़े कांच के शोकेस आज भी बरकरार हैं। इन कैफे में सुबह की चाय के साथ ब्रुन मस्का, बन मस्का और ईरानी चाय का आनंद लेना एक परंपरा बन चुका है।
ईरानी बेकरियों के प्रसिद्ध व्यंजन
मुंबई की ईरानी बेकरियां कई स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए मशहूर हैं, जिनमें शामिल हैं:
ब्रुन मस्का: मक्खन लगे ब्रेड के साथ चाय का अनोखा कॉम्बिनेशन।
खारी बिस्किट: कुरकुरी और हल्की बिस्किट, जो चाय के साथ परफेक्ट होती हैं।पट्टीस: मसालेदार स्टफिंग से भरी हुई पफ पेट्री।
मावा केक: मीठा, स्पंजी और पारसी स्वाद से भरपूर केक।
इरानी चाय: गाढ़ी और मलाईदार चाय, जो खास अंदाज में बनाई जाती है।
क्या होगा ईरानी बेकरियों का भविष्य?
अगर BMC का आदेश लागू होता है, तो संभवतः कई ईरानी बेकरियों को अपने पारंपरिक तरीके बदलने पड़ सकते हैं। कई मालिकों का कहना है कि वे गैस या इलेक्ट्रिक ओवन अपनाने को मजबूर हो सकते हैं, लेकिन इससे उनके उत्पादों के स्वाद में बदलाव आ सकता है।
मुंबई की ईरानी बेकरियों की यह विरासत केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि एक संस्कृति का हिस्सा है। BMC और ईरानी बेकर्स एसोसिएशन के बीच इस विषय पर कोई समझौता होता है या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान भी हैं ये
मुंबई की ईरानी बेकरियां और कैफे केवल खाने-पीने की जगह नहीं हैं, बल्कि यह शहर के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान का एक अहम हिस्सा हैं। अगर BMC का आदेश लागू होता है, तो आने वाले दिनों में यह परंपरा धीरे-धीरे खत्म हो सकती है।
क्या प्रशासन और बेकर्स के बीच कोई समझौता हो सकता है? क्या इन प्रतिष्ठानों की परंपरा को बचाया जा सकता है? ये सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं।