
क्या आप जानते हैं कि मोटापा सिर्फ एक पर्सनल हेल्थ इश्यू नहीं, बल्कि एक 'साइलेंट किलर' बन सकता है? भारत में तेजी से बढ़ते मोटापे के आंकड़े चिंता में डालने वाले हैं। यह न सिर्फ दिल, डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों को न्योता देता है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी भारी असर डाल रहा है।
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी, जंक फूड की बढ़ती लत और स्क्रीन टाइम में इज़ाफ़ा हमें इस ‘साइलेंट किलर’ की ओर धकेल रहा है। अगर अभी भी सतर्क न हुए, तो आने वाले वर्षों में मोटापा हमारी हेल्थकेयर सिस्टम और वर्कफोर्स को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
अब समय आ गया है कि हम सिर्फ वेट लॉस की नहीं, "फैट लॉस और हेल्दी लाइफस्टाइल" की बात करें। यह आर्टिकल आपको न सिर्फ मोटापे की गहराती समस्या से रूबरू कराएगा, बल्कि यह भी बताएगा कि कैसे सही खान-पान, एक्सरसाइज और जागरूकता से हम खुद को और देश को इस महामारी से बचा सकते हैं। आगे पढ़ें और जानें—कहीं देर न हो जाए!
भारत में मोटापे की वर्तमान स्थिति

नेशलन फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) 2019-20 के अनुसार, भारत में मोटापे की दर में चिंताजनक बढ़ोतरी देखी गई है। पुरुषों और महिलाओं दोनों में बॉडी मास इंडेक्स (BMI) 25 या उससे अधिक होने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जो मोटापे का संकेत भई है।
महिलाओं में मोटापा:
- NFHS-4 (2015-16) में, 15-49 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं में 20.6% मोटापे की दर थी।
- NFHS-5 (2019-20) में, यह दर बढ़कर 24% हो गई है।
पुरुषों में मोटापा:
- NFHS-4 में, 15-49 वर्ष की आयु वर्ग के पुरुषों में 18.9% मोटापे की दर थी।
- NFHS-5 में, यह दर बढ़कर 22.9% हो गई है।
ये डेटा साफ रूप से बता रहे हैं कि पिछले कुछ साल में मोटापे की दर में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25: स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था का संबंध

आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में अच्छे स्वास्थ्य को देश की समृद्ध और स्थिर अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण पूंजी के रूप में मान्यता दी गई है। स्वस्थ जनसंख्या कार्यक्षमता में वृद्धि करती है, जिससे उत्पादकता बढ़ती है और आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है। इसके विपरीत, मोटापा और उससे संबंधित बीमारियां स्वास्थ्य सेवा पर अधिक खर्च, कार्यदिवसों की हानि और उत्पादकता में कमी का कारण बनती हैं, जो आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न करती हैं।
स्वास्थ्य में निवेश से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है, क्योंकि स्वस्थ कार्यबल अधिक उत्पादक होता है और आर्थिक गतिविधियों में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेता है। इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवाओं पर कम खर्च से सरकार के वित्तीय संसाधनों को अन्य विकासात्मक क्षेत्रों में निवेश करने का अवसर मिलता है।
स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि:
- मोटापे से संबंधित बीमारियों के इलाज पर स्वास्थ्य सेवा खर्च में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
- इससे सरकारी और निजी स्वास्थ्य बजट पर दबाव बढ़ता है।
उत्पादकता में कमी:
- मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों में कार्यक्षमता की कमी और अनुपस्थिति की संभावना अधिक होती है।
- यह आर्थिक उत्पादन में कमी और कार्यस्थल की दक्षता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'मन की बात' में मोटापे पर संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में मोटापे के खतरों पर प्रकाश डाला है, इसे न केवल व्यक्तिगत बल्कि वैश्विक समस्या बताया है। उन्होंने स्वस्थ जीवनशैली अपनाने और संतुलित आहार के महत्व पर जोर दिया है। प्रधानमंत्री ने शारीरिक गतिविधियों को दैनिक जीवन का हिस्सा बनाने और पारंपरिक भारतीय आहार को प्राथमिकता देने की सलाह दी है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। इसके साथ ही उन्होंने खाद्य तेलों की खपत को भी कम करने के लिए कहा है। इस दौरान उन्होंने कहा, "मैं मोटापे से लड़ाई को मजबूत करने और भोजन में खाद्य तेल की खपत को कम करने के बारे में जागरूकता फैलाने में मदद करने के लिए निम्नलिखित लोगों को नामांकित करना चाहूंगा। मैं उनसे 10-10 लोगों को नामांकित करने का भी अनुरोध करता हूं ताकि हमारा आंदोलन बड़ा हो सके!"
As mentioned in yesterday’s #MannKiBaat, I would like to nominate the following people to help strengthen the fight against obesity and spread awareness on reducing edible oil consumption in food. I also request them to nominate 10 people each so that our movement gets bigger!… pic.twitter.com/bpzmgnXsp4
— Narendra Modi (@narendramodi) February 24, 2025
बदलती आहार आदतें और बढ़ता मोटापा
बढ़ती पर्चेजिंग पावर ने भारतीयों को पारंपरिक अनाज और दालों से प्रोसेस्ड फूड की ओर अट्रैक्ट किया है, जो मोटापे के बढ़ते मामलों का एक प्रमुख कारण है। प्रोसेस्ड फूड में काफी अधिक मात्रा में चीनी, नमक और अस्वास्थ्यकर वसा (Unhygienic Fat) होते हैं, जो वजन बढ़ाने में सहायक होते हैं। इसके अलावा, शहरीकरण (Urbanisation), बिजी और खराब लाइफस्टाइल के कारण लोग फास्ट फूड और पहले से तैयार फूड की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे न्यूट्रीशन से संबंधी इमबैलेंस (Imbalance) हो रहा है।
पारंपरिक भारतीय आहार, जो अनाज, दालें, सब्जियां और फल पर आधारित होता है, स्वास्थ्य के लिए अधिक लाभकारी है। हालांकि, मॉर्डन लाइफस्टाइल और बाजार में उपलब्ध जंक फूड के कारण लोग इनसे दूर हो रहे हैं, जिससे मोटापे की समस्या बढ़ रही है।
क्या हो सकते हैं जरूरी कदम
- स्वास्थ्य शिक्षा और जागरूकता: लोगों को स्वस्थ आहार और जीवनशैली के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है। स्कूलों, कार्यस्थलों और समुदायों में स्वास्थ्य कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
- शारीरिक गतिविधि को प्रोत्साहन: दैनिक जीवन में शारीरिक गतिविधियों को शामिल करने के लिए सुविधाएं और अवसर प्रदान किए जाने चाहिए, जैसे पार्क, साइक्लिंग ट्रैक और खेल परिसर।
- स्वस्थ आहार को बढ़ावा: पारंपरिक और संतुलित आहार को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना चाहिए।
- प्रोसेस्ड फूड पर नियंत्रण: प्रोसेस्ड फूड में उच्च चीनी, नमक और वसा की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए सख्त नियम लागू किए जाने चाहिए।
हेल्थ पर असर : जाना पड़ सकता है डॉक्टर के पास

मोटापा कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का प्रमुख कारण है, जिनमें हृदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, स्ट्रोक और कुछ प्रकार के कैंसर शामिल हैं। इसके अलावा, मोटापा मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिससे आत्म-सम्मान में कमी, अवसाद और चिंता जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। बढ़ते मोटापे के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर भार बढ़ता है, जिससे देश की स्वास्थ्य प्रणाली पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
इन बीमारियों का बनता है वजह:
हृदय रोग: उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल और हृदयाघात का जोखिम बढ़ता है।
डायबिटीज (diabetes): टाइप 2 मधुमेह की संभावना अधिक होती है।
सांस संबंधी समस्याएं: स्लीप एपनिया और अस्थमा जैसी समस्याएं बढ़ती हैं।
कैंसर: कुछ प्रकार के कैंसर, जैसे ब्रेस्ट, कोलन और एंडोमेट्रियल कैंसर का जोखिम बढ़ता है।
जोड़ों का दर्द: मोटापा जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव डालता है, जिससे जोड़ों का दर्द और गठिया हो सकता है।
बांझपन (Infertility): मोटापा महिलाओं और पुरुषों दोनों में बांझपन का कारण बन सकता है।
मेंटल हेल्थ : मोटापा डिप्रेशन और चिंता जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।
समाधान और सुझाव
मोटापे की समस्या से निपटने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, जिसमें शामिल हैं:
स्वास्थ्य शिक्षा:
- संतुलित आहार और नियमित व्यायाम के महत्व पर जागरूकता बढ़ाना।
- स्कूलों और समुदायों में स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम आयोजित करना।
नीतिगत पहल:
- स्वस्थ खाद्य विकल्पों की उपलब्धता और पहुंच सुनिश्चित करना।
- प्रोसेस्ड फूड और शुगरी ड्रिंक्स पर कर लगाना और उनके विज्ञापनों को नियंत्रित करना।
व्यक्तिगत पहल:
- नियमित शारीरिक गतिविधि को जीवनशैली का हिस्सा बनाना।
- पौष्टिक और संतुलित आहार का पालन करना।
सरकारी पहल:
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission): यह मिशन देश भर में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है, जिसमें मोटापे की रोकथाम और प्रबंधन भी शामिल है।
फिट इंडिया मूवमेंट (Fit India Movement): यह आंदोलन लोगों को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
ईट राइट इंडिया मूवमेंट (Eat Right India Movement): यह आंदोलन लोगों को स्वस्थ और सुरक्षित भोजन खाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
पोषण अभियान (Poshan Abhiyan): यह अभियान बच्चों और महिलाओं में पोषण के स्तर को सुधारने के लिए काम कर रहा है।
हमारे हाथ में ही है इसका समाधान :

अगर हम अभी से संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और स्वस्थ आदतों को अपनाते हैं, तो न सिर्फ खुद को, बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी मोटापे के दुष्चक्र से बचा सकते हैं। सरकार, हेल्थकेयर सिस्टम और समाज को मिलकर इस चुनौती का सामना करना होगा, ताकि आने वाला भारत "Fit India, Healthy India" बन सके।
👉 अब वक्त आ गया है कि हम अपने शरीर और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें। जागरूक बनें, एक्टिव रहें और हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाकर मोटापे को रोकें, वरना यह महामारी बनकर हम पर हावी हो सकती है। अभी नहीं तो कभी नहीं! 💪🔥👍👍
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