
कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को यह सिखाया कि स्वास्थ्य से बढ़कर कुछ नहीं। यह सिर्फ एक बीमारी नहीं थी, बल्कि एक वेक-अप कॉल थी, जिसने हमें अपनी जीवनशैली, स्वास्थ्य व्यवस्थाओं और व्यक्तिगत देखभाल को दोबारा परखने पर मजबूर किया। भारत में भी इस महामारी के बाद हेल्थ अवेयरनेस में बड़ा बदलाव आया। जहां एक तरफ लोग अपनी इम्यूनिटी और फिटनेस पर ध्यान देने लगे, वहीं दूसरी तरफ हेल्थ इंश्योरेंस का महत्व भी बढ़ा। लेकिन क्या समाज के सभी वर्गों को इसका समान लाभ मिला? इस World Health Day (7 April) पर जानते हैं, बदलते स्वास्थ्य परिदृश्य की हकीकत।
कोविड-19: हेल्थ के प्रति बदली लोगों की सोच

कोविड-19 महामारी एक वेक-अप कॉल थी जिसने दुनिया भर के लोगों को स्वास्थ्य के प्रति अपनी सोच बदलने पर मजबूर कर दिया। पहले, स्वास्थ्य को अक्सर हल्के में लिया जाता था, लेकिन महामारी ने दिखाया कि यह कितना नाजुक और महत्वपूर्ण है। लोगों ने महसूस किया कि स्वस्थ रहना न केवल व्यक्तिगत रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से भी आवश्यक है।
भारत में स्वास्थ्य जागरूकता: एक मिश्रित तस्वीर
भारत में, कोविड-19 के बाद स्वास्थ्य जागरूकता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, लेकिन यह समाज के सभी वर्गों में समान रूप से नहीं फैली है।
उच्च और मध्यम वर्ग: इस वर्ग में स्वास्थ्य जागरूकता का स्तर काफी ऊंचा है। वे नियमित रूप से व्यायाम करते हैं, स्वस्थ भोजन खाते हैं, और समय-समय पर स्वास्थ्य जांच करवाते हैं। वे स्वास्थ्य बीमा के महत्व को भी समझते हैं और इसमें निवेश करते हैं।
निम्न मध्यम और निम्न वर्ग: इस वर्ग में स्वास्थ्य जागरूकता का स्तर अभी भी कम है। वे अक्सर गरीबी, शिक्षा की कमी और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करते हैं। नतीजतन, वे स्वस्थ जीवनशैली अपनाने और बीमारियों से बचने के लिए संघर्ष करते हैं।
आर्थिक असमानता और स्वास्थ्य

आर्थिक असमानता भारत में स्वास्थ्य जागरूकता और पहुंच में एक बड़ी बाधा है। निम्न मध्यम और निम्न वर्ग के लोग अक्सर अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते हैं, इसलिए वे स्वास्थ्य पर ध्यान देने में असमर्थ होते हैं।
पोषण: वे अक्सर सस्ता और अस्वास्थ्यकर भोजन खाते हैं, जिससे वे कुपोषण और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के शिकार हो जाते हैं।
स्वास्थ्य सेवा: वे अक्सर गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने में असमर्थ होते हैं, जिससे उनकी बीमारियां गंभीर हो जाती हैं।
जागरूकता: उनके पास स्वास्थ्य के बारे में जानकारी और शिक्षा की कमी होती है, जिससे वे गलत निर्णय लेते हैं।
क्या कहते हैं स्वास्थ्य सुविधाओं के ये आंकड़े:
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, भारत में 5 साल से कम उम्र के 35.5% बच्चे कुपोषित हैं।
विश्व बैंक के अनुसार, भारत में 10% आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है, जिसके कारण वे बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं ले पाते हैं।
बीमारियों की बदलती प्राथमिकताएं

कोविड-19 से पहले, भारत में हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर और श्वसन रोगों जैसी गैर-संचारी बीमारियों (NCDs) को गंभीर माना जाता था। हालांकि, कोविड-19 के बाद, मानसिक स्वास्थ्य, मोटापा और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों को भी गंभीर माना जाने लगा है।
मानसिक स्वास्थ्य: कोविड-19 महामारी ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाला है। लॉकडाउन, सामाजिक दूरी और नौकरी छूटने के कारण लोगों में तनाव, चिंता और अवसाद बढ़ गया है।
मोटापा: लॉकडाउन के दौरान लोगों की शारीरिक गतिविधि कम हो गई और वे घर पर अधिक समय बिताने लगे, जिससे मोटापा बढ़ गया। मोटापा कई अन्य बीमारियों जैसे हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर का खतरा बढ़ाता है।
जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां: कोविड-19 ने लोगों को अपनी जीवनशैली के प्रति अधिक जागरूक बनाया है। लोग अब स्वस्थ भोजन खाने, नियमित रूप से व्यायाम करने और तनाव कम करने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं।
स्वास्थ्य बीमा: एक बढ़ता हुआ बाजार

स्वास्थ्य बीमा एक वित्तीय उपकरण है जो बीमारियों और दुर्घटनाओं के कारण होने वाले चिकित्सा खर्चों को कवर करता है। कोविड-19 महामारी के बाद, भारत में स्वास्थ्य बीमा के प्रति लोगों की जागरूकता और मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
बाजार का आकार: भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के अनुसार, भारत में स्वास्थ्य बीमा बाजार पिछले 5 वर्षों में 15% की वार्षिक दर से बढ़ा है।
कारण: स्वास्थ्य बीमा की मांग में वृद्धि के कई कारण हैं, जिनमें शामिल हैं:
1. चिकित्सा खर्चों में वृद्धि
2. जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का खतरा
3. कोविड-19 महामारी के कारण स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता
4. सरकार द्वारा स्वास्थ्य बीमा को बढ़ावा देना
पिछले 5 वर्षों में स्वास्थ्य सुविधाओं और बुनियादी ढांचे में वृद्धि

भारत में स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रयासों से पिछले 5 वर्षों में स्वास्थ्य सुविधाओं और बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, हालांकि जनसंख्या वृद्धि को देखते हुए अभी भी और सुधार की आवश्यकता है।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) के अनुसार:
1. उप-केंद्र (Sub-Centres): मार्च 2018 में देश में 1,57,281 उप-केंद्र थे, जो मार्च 2023 तक बढ़कर 1,63,227 हो गए।
2. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (Primary Health Centres - PHCs): मार्च 2018 में 30,045 पीएचसी थे, जो मार्च 2023 तक बढ़कर 33,844 हो गए।
3. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (Community Health Centres - CHCs): मार्च 2018 में 5,624 सीएचसी थे, जो मार्च 2023 तक बढ़कर 6,207 हो गए।
4. मेडिकल सीटें: MBBS की सीटें 2014 से पहले लगभग 51,348 थीं, जो बढ़कर 2023 में 96,077 हो गईं। इसी तरह, पोस्ट ग्रेजुएट सीटों की संख्या भी बढ़ी है।
विश्लेषण: इन आंकड़ों से पता चलता है कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है, ताकि ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा मिल सके। मेडिकल सीटों में वृद्धि से अधिक डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित होगी, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा।
अब भी कम नहीं हैं चुनौतियां:
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All AI Photos, Credit by Copilot and Meta AI |
हालांकि बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ है, लेकिन स्वास्थ्य कर्मियों की कमी, संसाधनों का असमान वितरण, और स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में जागरूकता की कमी जैसी चुनौतियां अभी भी मौजूद हैं।
स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने के उपाय
स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
शिक्षा: लोगों को स्वास्थ्य के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है, खासकर निम्न मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों को।
पहुंच: स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ाना महत्वपूर्ण है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
सामुदायिक भागीदारी: स्वास्थ्य कार्यक्रमों में समुदायों को शामिल करना महत्वपूर्ण है।
मीडिया: मीडिया स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
सरकारी नीतियां: सरकार को स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाली नीतियों को लागू करना चाहिए।
नया सबक, नई सोच – स्वास्थ्य सबसे पहले!
कोविड-19 ने पूरी दुनिया को यह अहसास कराया कि स्वास्थ्य कोई विकल्प नहीं, बल्कि प्राथमिकता होनी चाहिए। भारत में हेल्थ को लेकर अवेयरनेस तो बढ़ी, लेकिन क्या यह सभी वर्गों तक समान रूप से पहुंची? जहां एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग अपनी सेहत पर ज्यादा खर्च कर रहा है, वहीं निम्न वर्ग अब भी आर्थिक बाधाओं से जूझ रहा है। हेल्थ इंश्योरेंस, संतुलित जीवनशैली और जागरूकता को हर स्तर तक पहुंचाना ही इस बदलाव को सार्थक बनाएगा।